रामनामाकंन साधना 34
https://ramnaamdhanbank.org/wp-content/themes/osmosis/images/empty/thumbnail.jpg 150 150 rohit rohit https://secure.gravatar.com/avatar/d1d5b0292aa2e9344e2d45b93746234f644888dbd43c1cf89ac3ab04bb8e3130?s=96&d=mm&r=gरामनामाकंन साधना 34
साधकों ! क्या आप को रामनामाकंन करते हुए कभी यह अनुभव में आया है कि, *जो कुछ भी है वह सब मैं ही हूं!
जिनको भी यह भास होगया वो उस अवस्था को बतला तो नहीं सकते पर उनकी अनुभूति को प्रणाम।
उनको प्रणाम परमात्मा को ही प्रणाम हैं।
मूल में यह अवस्थाभान एक न एक दिन हर रामनामाकंन को समर्पित साधक को होनी ही हैं।
किसीको पहले किसीको अभी तो किसी को फिर कभी पर ,अगर साधक समर्पित हैं तो निश्चित ही इस अवस्था को उपलब्ध होने में कहीं कोई बाधा नहीं हैं।
हमारी मनोमयी सत्ता के पिछे सदा से विद्यमान इस गहन से गहन विशालतर तथा अधिक सशक्त चैतन्य का निर्वचन कराने वाला साधन हैं रामनामाकंन , क्योंकि वह जो चैतन्य है वही ब्रह्म हैं, और रामनामाकंन से निर्वचन हुआ साधक ही उसको अनुभूत करता सकता हैं
मूल में हमारा निजस्वरूप ब्रह्मस्वरूप ही हैं।
उसको अनुभूत नही करने देने में,जो जडत्वधारी सत्ताएं हमें भटकाती रहती हैं, वह भटकाव बन्द होने का एक मात्र साधन हैं, रामनामाकंन।
देखो मनस्तत्त्व,प्राणस्त्त्व,इन्द्रियत्त्व ,अथवा वाकत्त्व जिसकी अनुभूति हमें पल पल होती रहती हैं, यह तो परब्रह्म स्वरूप नहीं हैं।
यह तो मात्र निम्नस्तरीय आकार प्रकार हैं,जो हमारी चैतन्यसत्ता से भटका कर सांसारिक होने में सहायक हैं और यही सब तो हमारे अतिप्रिय होकर हमारे आकर्षण का केन्द्र बन बैठे हैं।
इतना आकर्षण हैं कि, जीव को इसमें ही घुलमिल कर उसीको परमानन्द समझने की महान भूल करवा रहे हैं।
इससे अधिक आनन्द जिसकी झलक मात्र अर्थात परछाई मात्र से इनमें आकृषण अनुभूत होता हैं, उस मूल तत्त्व तक जाने का विचार तक मनमें उत्पन्न नहीं होने देते।
क्योंकि,मन बुद्धि चित अहं को तो बस यही अभिव्यक्ति जो इन्ही के माध्यम से होती हैं अथवा होरही हैं, उसीको सर्वस्व मान लिया तो आगे की अनुभूति का विचार ही नहीं जाग्रत हो सकता और न उन विचारों से अपने को अलग करने का भाव ही प्रकट हो पाता।
इन बाहरी उपकरणों से पिण्ड छुडाने का भाव मात्र और मात्र सतत रामनामाकंन से ही घट में प्रकट हो सकता हैं ।
इस लिए ही रामनामाकंन को सर्वश्रेष्ठ साधना कहा गया हैं,और यही सत्य भी हैं।
क्योंकि ब्रह्म चैतन्य ही हमारी सच्ची सत्ता हैं वास्तविक स्वरूपा हैं, उसी सत्ताको रामनाममहाराज कहा गया हैं।
परंतु बस साधक इस भाव से रानामाकंन में संल्गन हों कि, उससे रामनामाकंन होने लगे।
उसका रामनामाकंन करने का भाव सर्वथा समाप्त हो जाये। तथास्तु!
जय जय जय राम नाम महाराज की जय।
बी के पुरोहित 9414002930-8619299909
वास्ते श्री रामनाम धन संग्रह बैंक नेडलिया,पुष्कर राज 305022