रामनामाकंन साधना*

150 150 rohit

रामनामाकंन साधना*
आपसे निवेदन किया गया था,कि, साधन और साधना दोनों के व्यवहार में बहुत अंतर हैं।
साधन से साधना करते हुए साध्य को साधा जाता हैं, पर रामनामसाधना में साधन के माध्यम से स्वःको साध्य किया जाता हैं,और साध्यता हो जाने के उपरांत साध्य किये गये तत्त्व को ही स्वः को उपलब्ध होने पर परिणाम में साधन ,साधना,साध्य और साध्य हुए साध्य की उपलब्धता में एक्यता का वह परिणाम होता हैं कि, कुछ भी भिन्नता नहीं रह जाती हैं।
साध्य को जानकर एकाकार हुआ साधक स्वयं साध्य हो जाताहैं,अर्थात राम हो जाता हैं।
यह सिद्धांत हैं।
जानत तुमहहिं तुमहिं होहिं जाहीं

*राम”नाम जप ,अंकन और अंकन कालमें, स्वमनोवृतियों में होते परिवर्तन ,परिवर्तनोंपरांत मनस्तत्त्व का शांत हुआ शुन्यको उपलब्ध हुआ साधक ,साध्यसे एकाकार होकर जब किसीको दर्शन देता हैं,तो उसके दर्शन करने वाला भी कुछ क्षण तो रामनामानुराग को उपलब्ध हो जाता हैं।
चाहे वो प्राणी कैसा भी रहा हों?

 ऎसे साधक जो साधना से साध्य को उपलब्ध हो स्वयं राम होगये।
 ऎसे साध्यको उपलब्ध होगयी परम आत्माओं को ही विलक्षण संतों की उपाधियों से नवाजा गया और उनके लिए  गोस्वामी जी ने लिखा,कि ऎसे संतों के दर्शन दुर्लभ हैं।

ऎसे संत बिना‌ हरिकृपा के समक्ष प्रकट नहीं हो पाते।

बिनु‌ हरि कृपा मिलहिं नहीं संता

मिलहिं नहीं, का‌ तात्पर्य यह हैं कि, ऎसे संत मिलते नहीं हैं।
मिलते नहीं का तात्पर्य. यह नहीं कि होते ही नहीं हों ? होते है, वो भी कोई एक दो नहीं बल्कि अनन्त हैं, पर‌ हमारी बोद्दिक दिवालियेपन के कारण हमारे सामने उनका रामत्व प्रकट नहीं हो पाता।
अर्थात. हम अपने राग द्वेषादि के कारण हमारी बोद्धिकता पर पडे पर्दों के कारण हमारे समक्ष होते हुए भी हम उनको पहचान ही नहीं सकते।

हमारे सामने तो, स्वयं राम ही साकार हो कर हर क्षण समक्ष हैं, तो क्या हम जान पा रहे हैं ?
नहीं न !
बस इसी कारण , गोस्वामीजी कि,यह उक्ति यह कथन हमारी समझ से परे हैं,जिसमें गोस्वामी जी ने लिखा है कि,
सियाराम मय सब जग जानी
कर ऊँ प्रणाम जोरि जुग पानी
इस कथन में गोस्वामीजी को यह चराचर जगत का दृश्य सीयाराममय रूप में ही दर्शित हो रहे हैं।
तो एक बात पर. मनन करें कि,
जो जगत गोस्वामी जी को राममय दृष्टिगोचर हो रहा हैं,उसी जगत के दर्सन करते हुए भी हम क्यों नही रामदर्शन कर पा रहे हैं ?
बल्कि उसी जगत के दर्शन करते हुए भी हम कहते हैं कि,राम कहां हैं?

बसी बुद्धिके इसी जडत्त्व को समाप्त कर परम चैतन्यानुभूति हेतु एक ही साधन हैं,और वह हैं रामनामाकंनम्
श्रीरामनामालयम्

36 comments

Leave a Reply

Your email address will not be published.