रामनामाकंन साधना 26
स्व साधना का एक अंग रामनामाकंनियों की ह्रदय से सेवा भी हैं
स्व-साधना में रामनामाकंन जैसी कोई अन्य. साधना नहीं हैं, स्वसाधना का तात्पर्य अपने ही भीतर विद्यमान परमात्मा को अनुभूत कर के उससे एकाकार होजाना ।
इसका ही एक अंग हैं जो भी रामनामाकंन कर रहे हैं उनकी सेवा तन से मन से धन से की जाना।
गोस्वामीजी ने तो अपने तन की चमडी का एक एक कतारा ऎसे महानुभवों के निमित कर दिया जो सहज भाव से ही रामनाम महाराज को समर्पित हैं अथवा रामनामसाधकों की सेवा में रत हैं।
अक्षर लोग व्यख्या करने में कतराते हैं,कारण कि उनको पढाया गया हैं,दस नामापराध !
वो दस नामापराध किसी को भी किसी से बडा छोटा बताने को स्वसाधना में महान व्यवधान बताते हैं, और हो सकता है कि,वो सच भी हों ?
परंतु सेवक की अनुभुति में आया नहीं,कारण कि,
जिन भी महानुभाव ने दस नामापराध बताये या गिनाये हैं, उन्होने उसमें रामनामाकंन को सामिल नहीं किया हैं इस बात का भी विशेष ध्यान रखना होगा !
नारदजी ने यह वरदान मांगा कि, हे प्रभु में आपके माध्यम से यह आश्वाशन चाहता हूं कि, रामनाम आपके समस्त नामों में सर्व श्रे्ष्ठ हों!
दुसरा रामनाम का प्रभाव जीवन के लौकिक- अलौकिक सभी क्षेत्रों में अतिविशिष्ठ रूप से हों?
उससे भी विशिष्ठ रूप से मांगा गया यह बरदान !
जहां रामनामाकंन हों, रामनामाकंन साधकों की किसी भी प्रकार से सेवा हों, उन पर रामनाममहाराज की कृपादृष्टि सदा बरषती रहे?
और जहां जिसपर भी रामनाम महाराज की कृपा बरष जाएं-
उस का प्रताप बखान करना तो स्वयं मां सरस्वति के लिए भी असंभव हों !
गोस्वामी जी , रामनाममहाराज के साकार स्वरूप में श्रीराम को मानते हैं,परंतु उस अवतार के समक्ष भी रामनाम एवं रामनामाकंन केमहत्व को बखान करने से चुकते नहीं।
साथ ही कहते भी हैं, कि
को बड छोट कहत अपराधू
कहते हैं कि नामापराधोंमें यह भी गिनाया गया हैं कि,
भगवान शिव विष्णु आदि के नामों को ऊंचा निचा बताना या कल्पना भी करना ,भगवान के अनन्त नाम हैं, उनके किसीबनी नामरूप को छोटा बडा बताना ,यह पाप ही नहीं हैं, बल्कि यह तो बहुत ही
बडा पाप हैं।
परंतू मैं तो कहुंगा ही, भले ही यह अपराध ही हों कि,
राम से बडा राम का नाम
रामु न सकहिं नाम गुन गाई
नहिं कलि करम न धरम विवेकू
यह बात इतनी सहजता से कहदी कि,
हर तरह की साधना को रामनाममहाराज की शरणागति के समक्ष नगण्य कर दिया।
तीनो तरह के योगों को भी नगण्य कर दिया।
नहिं कलि ,
करम न धरम न विवेक ।
यहां कर्मयोग , विवेकु कहकर ज्ञानयोग और न धरमू कह कर यज्ञादि साधनों को भी कलिकाल में महत्वहीन अथवा छोटा बता दिया, रामनामाकंन के समक्ष।
अब आप लोग जो किसीभी प्रकार की रामनामाकंन साधना में लगे हैं, वो स्व-साधना में रत हैं वो समझलें कि,उनकी साधना का ब्रह्माण्ड में कोई सानी नहीं हैं।
चाहे कोई किसीको पुस्तिका उपलब्ध कराते हॊं?
चाहे कोई सेन्टर चलाते हों ?
चाहे कोई रामनामाकंन पुस्तिकाएं उपलब्ध कराते हों ?
चाहे कोई रामनाममहाराज की प्रदक्षिणा का आयोजन कराते हों?
या आयोजन में कोई भी पार्ट निभाते हों?
या प्रदक्षिणा करने वालों की कोई भी किसी भी प्रकार की सेवा हों ? करते हों?
यह सब प्रकार हैं रामनामाकंन की सेवा साधना का ही अंग हैं।
जयपुर वासियों के लिए यह सुअवसर ,आराध्य राधागोबिन्ददेवजी की अनुकम्पा से पुज्य महंत गोस्वामी श्री अंजन कुमारजी एवं श्रीमानस गोस्वामीजी की कृपा से, दिनांक 3 दिसबंर से 15 दिसंबर तक होने जा रहे आयोजन के माध्यम से उपलब्ध होने जा रहा हैं।
जय जय जय जयति जय जय।
राम राम राम
वास्ते श्री राम नाम धन संग्रह बैंक पुष्कर राज।
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