रामनामाकंन साधना 33

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रामनामाकंन साधना 33

रामनाम और अन्य साधन ?

साधकों को कभी कभी मायिक बुद्धि भ्रमित करने आती रहती हैं !

यह घटना ही नही बल्कि बडी ही विलक्षण दुर्घटना हैं, जो अन्य व्यक्तियों (जो लोग रामनामाकंन नही करते ) की तो बात ही छोडो़ ,बल्कि जो रामनामाकंन करने के लिए स्वयं को समर्पित कर देते हैं,उनके जीवन में भी घटती रहती हैं।

यह घटना कैसे घटती हैं, इस बात का खुलासा करते हैं।
जब कोई साधक किसी को भी योग तप तपस्या करते देखता हैं, तब उसके मन में यह क्षणिक घटना घट जाती हैं।
उसको मन में लगता हैं कि, अरे यह जन इतनी कठोर तपस्या कर रहा हैं, मैं तो केवल रामनाम करता हूं तो मैरा क्या होगा ?
यह तो इतनी तीर्थों की यात्रा कर आया, तिर्थॊं में जाकर कथा भागवत श्रवण करके आया हैं,मैं तो कहीं गया ही नहीं।
यह तो इतने व्रत उपवास करता हैं, में तो व्रत उपवास कर ही नही सकता,या मैने तो कभी एकादशी का व्रत किया ही नहीं।
यह जन तो निर्वस्त्र रह कर सर्दी गर्मी बारिश में रहते हुए कितना तप कर रहा हैं ?
यह तो अंत समय में मरणोंपरांत भोजन जल आदि का त्याग करते हुए अपने प्राण त्याग करने को संकल्पित हैं, तो इनकी साधना के समक्ष मेरी साधना क्या हैं ?
इस व्यक्ति ने तो चारों धाम की यात्रा अपने पैरो पर चलकर पूरी करने का संकल्प लिया हैं,ना जाने कितने समय में पूरी होगी, और इससे भी बढ़ कर कुछ जन तो दण्डवत प्रणाम करते हुए चारों धाम की यात्रा पर निकले हैं, तो कहां उनकी इतनी कठोर साधना और कहां मैं ?
मैं तो मात्र रामनाम का अंकन कर रहा हूं, और वो भी पंखे में बैठकर A C में बैठ कर तो मॆरा साधक होना क्या मायने रखता हैं?
यह जो विचार मनमें जब कभी भी किसी भी रामनामाकंन कर्ता के मन में कोंधता हैं, यही बडी विलक्षण घटना हैं, जो उसको साधक होने में बाधक हो जाती हैं।
इस घटना से साधक की मायिक बुद्दि में जो प्रभाव पड जाता हैं,यह बहुत हानिकारक हो जाता हैं।
यह मायिक बुद्धि तो क्या सात्विक बुद्धि राजसी बुद्धि को छोडों अतंकरण तक को विचलित कर देती हैं।

राम नामाकंन कर्ता साधक के मन में ऎसे विचार उठ भी जाएं तो उनको तुरंत मानस से बाहर करें।

कोई कितनी भी साधना करता हों कैसे भी करता हों, पर उनकी समस्त साधनाएं रामनामाकंन के समक्ष कुछ भी नहीं हैं।

यह बात मन मस्तिष्क बुद्धि ही नही अतंरमन में भी अच्छे से बिठालो।*
अगर कुछ होता तो माता पार्वती को भी शिवजी वहीं विद्या सिखाते जो सप्तृषियों को सिखाई।

सप्त ऋषियों को अति कठोर साधना और माता पार्वती को मात्र रामनामाकंन ,इसका क्या तात्पर्य हुआ ?
इसमें रहस्य इतना ही था कि,माता में समर्पण भाव और सप्त ऋषियों में स्वयं में कर्ताभाव जाग्रत था।

ऎसे रामनामाकंन साधकों को, यह बात मन में बिठा लेनी हैं,कि, मात्र समर्पण भाव जाग्रत रहे जो रामनामाकंन करूंगा,ऎसा भाव सर्वप्रथम जाग्रत हुआ था ,जब प्रथम पुस्तिका ली थी,तब जाग्रत हुआ,उसी भाव को आगे बढाते रहना हैं।
क्योंकि रामनामाकंन से ही अनुराग जाग्रत होगा और:–:;
मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा
किएं जोग जप तप व्रत ….?

दुसरी बात जो कि अति सहज हैं,उसको भी सदा याद रखें।
नही कलि कर्म न धर्म बिबेकू
राम नाम अवलंबन एकू
साधकों रामनाम को छोड कर जो कभी भी अन्य उपायों पर ध्यान जाता हों तो इस बात को याद कर लेना कि,

राम नामको छाडिं कर करै अन्य से आस
बरषत बारिद बूंद गहि चाहत चढ़न आकास

ऎसे व्यक्ति जो राम नाम को छोड कर अन्य साधनों से आशा करता हों, ? तो उसका प्रयास बस मात्र इतना ही हैं कि, मानो वो बरसती बारिस की बूंदों को पकड कर आकाश में चढ़ना चाह रहा हों?
जो कभी भी किसी के लिए संभव नहीं हैं ?

एक कठोर बात कहता हूं जो कि मेरी नहीं हैं,गोस्वामी जी ने कही हैं, गोस्वामीजी जो कि हर साधना के परणाम से परिचित हैं, हर शास्त्र के ज्ञाता हैं,उनसे कुछ भी छुपा नहीं हैं, उनका कथन हैं कि,

यदि कोई भी साधक रामनाम को छोड़ कर किसी अन्य साधन को अपनाने की मन में विचार करता हों, तो उसका यह विचार ऎसा होगा कि,मानो अपनी थाली में परोसे हुए पकवानों को छोड़ कर घर घर जाकर रोटी का टुकडा मांगता फिर रहा हों ?
तात्पर्य कि ऎसा मुर्ख कॊन होगा ?
बस वही जो रामनामको छोड कर अन्यत्र विश्वास करने लगे।

अतः रामनामाकंन साधकों से निवेदन हैं कि, जैसे भी हों रामनाम में लगे रहो।
रामनाम की सेवा में लगे रहो।
आपको लगे कि कहीं कोई अवमानना होगयी हैं,अथवा अपमान होगया हैं तब भी रामनामाकंन नही छोडना है।
रामनांहाराज की शरणागति ही सर्वोतम हैं।

रामनामाकंन कर्ता के मन में भी कभी भी यह विचार नही आना चाहिये कि ,रामनामाकंन से परे हो जायें।
क्योंकि इस अति दुर्ळभ मानव तन में आने के बाद इससे बडी दुर्घटना कुछ भी नही हैं।

एक धून एक आस एक विसवास से लगे रहो कि, रामनाममहाराज ही बेडा पार लगायेगे।

एक भरोसो एक बल एक आस विसवास
रामनामाकंन चांद है तो चातक तुलसीदा

राम ही भजिये गाइये रामही

राम ही लेना रामही देना
रामही भोजन राम चबेना

सेवा में समर्पित आपका अपनाआप
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