रामनामाकंन साधना 35

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रामनामाकंन साधना 35
आज रात भर मानस का एक ही शब्द गुँजता रहा,
पद पाताल सीस अज धामा
अपर लोक दायक विश्रामा
प्रातः प्रार्थना में इसकी व्याख्या करने का निवेदन किया,और महर्षि बालेन्द्र जी ने जो शब्द समझाये वो आप लोगो कि सेवा में प्रस्तुत हैं।
राम नाममहाराज का वैश्विकस्वरूप का वर्णन गोस्वामीजी ने इस चौपाई में किया हैं ।
एक शब्द और मानस में आया हैं “अश्वमेध”
यह अश्वमेध क्या हैं ?
यह अश्वमेध यज्ञ जिसका वेदों में उपनिषदों में नाना अर्थ किया गया हैं, परंतु जो भी रामनामाकंन कापुरश्चरण कर रहा हैं?
को भी ससंकल्प निजहस्त चॊरासी लाख बार रामनामाकंन कर रहा हैं, वह अश्वमेध यज्ञ ही कर रहा हैं।

वेदों में मानस में या अन्यत्र जहां जहां भी अश्व का प्रयोग हुआ हैमन वह पारब्रह्म परमेश्वर श्रीराम का व्यापक स्वरूप को प्रतिपादित करता हैं।
पद पाताल सीस अज धामा पाताल से लेकर अपर लोक तक का वर्णन किया हैं।*
अश्व का वर्णन ही उन्होने इस स्वरूप को प्रद्रशित करने को कहा हैं कि,
अश्व को एक प्रचण्ड प्रतीक भव्यता के साथ रामनाममहाराज के विश्वात्मा के रूप को प्रतपादित किया हैं।
ॐ उषा मेध्य का तात्पर्य अश्व का शिर हैं। अर्थात
सुर्य उसके चक्षु हैं,वायु उसका प्राण हैं।
उसका खुला हुआ मुख व्यतमुख वैश्वानर अग्नि हैं,वैश्व ऊर्जा हैं; काल’ मेध्य अश्व की आत्मा हैं,द्युलोक उसकी पीठ है,और अतंरिक्ष उसका उदर है,धरती उसके पैर टिकाने का स्थान हैं,दिशाएं उसका पार्श्व भाग हैं।
अवान्तर दिशाएं उसके पार्श्वभाग की अस्थियाँ अर्थात पसलियां हैं।
ऋतुएं अंग हैं, मास तथा अर्धमास उसकी पर्व संधिया हैं, ये जो नक्षत्र घुमते हैं यह अस्थियां हैं, यह जो नभ हैं, उसके शरीर का मास हैं।
समुद्री सिकता उसके उदर में स्थित अन्न है। नदियां उसकी शिराएं है पर्वत उसके यकृत और फेफडे हैं।
औओषधियां तथा वनस्पतियां उसकी शरीर के लोम हैं।‌
उदित होता हुआ दिवस उस अश्व का पुर्वार्ध है तथा अस्त होता हुआ दिवस उसका जघनार्थ यानि कि पिछे का भाग हैं।
जब रामनाम महाराज अंगडाई लेते हैं तो बिजलियां चमकती हैं; जब वह अपने को झकझोरता (कंपाता) है तब मेघो की ध्वनि होती हैं। जब वह मुत्र त्याग करते हैं तब बर्षा होती है।
वाक् (शब्द) रामनांहाराज की ही वाणी हैं।
ज्योहिं अश्व सरपट दोडा ,दिन-रूपी महिमा का जन्म हुआ ,पूर्वी समुद्र में उनका जन्म हुआ।
उसके पिछे रात्रि-रूपी महिमा का जन्म हुआ तथा उसका जन्म पश्चिमी जलों में हुआ।
रामनांहाराज के दोनों और ये ही महिमाएं प्रकट हुई।
हय” बन कर उन्होने देवों को वहन किया, वाजी बन कर गंधर्वो को वहन किया, अर्वा बन कर असुरों को वहन किया अश्व बनकर मनुष्यों वहन किया ।
समुद्र ही उसका बन्धु हैमन, तथा समुद्र ही उसकी योनि हैं। जन्म स्थान हैं।
यह रुपक रामनाममहाराज के निज स्वरूप को समझने के लिये अथवा समझाने के लिए लिखा गया हैं।
हर रामनामाकंन करने वाला जब इस दृष्टिसे देखेगा तो उसको हर पल हर स्थान पर रामनांहाराज के दर्शन लाभ होना आरंभ हो जायेगा।
इस स्वरूप के दर्शन करने पर हम अश्वमेधयज्ञ के आश्व के दर्शन करेगें तो हमारा सौभाग्य होगा।
हम पुरातन मानसिकता में आधुनिक सुक्ष्मताओं को पढ़ने अथवा आदिम- असभ्य अन्धविश्वासों को सभ्य रहस्यवाद से बदल देने के दोष के संकट में पड़ने से सदा बच जायेगें।
हम हत पल‌ अश्वमेध यज्ञ अथवा यज्ञ के अश्व के दर्शन करेगें तो आध्यात्मिक प्रगति में एक विलक्षण उछाल आ जायेगा।
रामनाममहाराज के वास्विक स्वरूप को अनुभूत करने का एक अतिविलक्षण योग जीवन में उतर आयेगा।
आप सबकी सेवार्थ प्रस्तुत।
महर्षि बालेन्द्र (रामनामाकंन के प्रथम दृष्टा महर्षि) का विलक्षण उपदेश , बडे योग से आपकी सेवा में समर्पित हैं।
प्रस्तुत कर्ता
बी के पुरोहित 9414002930-8619299909
वास्ते श्री राम नाम धन संग्रह बैंक पुष्कर अजमेर 305022

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