रामनामाकंन साधना 36

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रामनामाकंन साधना 36
राम नामाकंन साधना से जो आध्यात्म अनुभूत होता हैं,उसको समय समय पर महर्षि जी ने हमे बताया और बताते रहते हैं।

राम नाम सत्य हैं।
राम नाम ही सत्य हैं।
इस बात को कितने लोग स्वीकार कर पाते हैं।

अगर राम नाम सत्य हैं, इस शब्द को भी स्वीकार करने में समस्या अनुभव में आती हों ?
तब आगे की यात्रा कैसे संभव होगी ?
अगर आप को लगता हैं कि, आपने इस सत्य को स्वीकार्यता प्रदान करदी हैं, तो ?

तो एक परिक्षण अवश्य करना, हालांकि यह एक बहुत ही छोटा सा उपाय हैं, पर साधक को प्राथमिक अनुभूति हेतु आवश्यक हैं।

साधक को चाहिये कि, अपने घर में जो भी छोटा बालक हैं, बच्चा बच्ची पोता पोति दोहित दोहित्र आदि,
उसको गोद में उठा कर बाहर से भीतर या भीतर से बाहर लाते हुए बोल कर देखिये !

राम नाम सत्य हैं
तब अपने भीतर उठने वाली तरंगों का अध्यन किजीये,कि यह शब्द स्वीकार्य हो गया हैं या नहीं।
यह आपका अनुभव आशिंक अनुभव करायेगा कि,राम नामाकंन करते हुए राम नाम से कितना प्रेम हुआ हैं?
अगर यह शब्द उच्चारण करते हुए आनंद की अनुभूति होती हैं तो आप उस प्राथमिक अवस्था को पार कर गये।
तब आपको अपनी दुसरी अवस्था को अनुभव करने के लिए मार्ग प्रशस्त होरहा हैं।
आइये आगे कि यात्रा करते हैं।

हमको बताया गया हैं कि राम ही प्राण हैं ।
यह प्राण कहां से आता हैं, कहां प्रयाण कर जाता हैं,इस बात को समझना हैं, अगर बुद्धि कार्य करती हैं तो बुद्धि से समझलो, नही तो समय पाकर जैसे जैसे रामनामाकंन होता जायेगा तब जपानुराग के अनुसार अनुभव में आता जायेगा।
राम हमारा आत्मा हैं‌।

आत्मा से प्राण वायु उत्पन्न होता हैं ।
(जैसे पुरुष से छाया उत्पन्न होती हैं वैसे ही)
मन की प्रक्रिया से यह शरीर में प्रवेश करता हैं।
फिर जैसे कोई अधिकारी अपने कर्मियों को भिन्न भिन्न स्थानों पर नियुक्त करता हैं,वैसे ही यह मुख्य प्राण वायु ,दुसरे प्राणों को आदेश करता,नियुक्त करता हैं कि, जाओ अलग अलग क्षैत्रों पर जाकर शासन करो।

पायू एवं उपस्थ में अपान (निम्न) वायु स्थित हैं, तथा मुख एवं नासिका में स्वयं प्राण (मुख्य वायु) स्थित करता हैं।
मध्य में समान वायु को, इसी का कार्य होता हैं हुतान्न को समान रूप से वितरण करना।
कारण ,इसीसे सप्त अग्नियों का जन्म होता हैं।

यह आत्माराम ह्र्दय में निवास करता हैं और ह्रदय में एकसोएक नाडियां होती हैं।
और प्रत्येक नाडी़ में सॊ सॊ शाखा नाडियां होती है। इन सब में जो संचरण करता हैं, वह व्यान वायु।
इन अनेको मे एक है जिससे उदान वायु (उपर की और ) प्रयाण करता हैं।
यही है जो पुण्यों के द्वारा,पुण्यलोक में,पापों के द्वारा नर्क में तथा पाप तथा पुण्यों के मिश्रित कर्मों से पुनः मनुष्य लोक में वापिस ले आता हैं।

समझो !
इस शरीर के बाहर सूर्य ही है मुख्य प्राण ,कारण यह उदित होते हुए चक्षुओं को सम्प्रेषित करता है।
पृथ्वी में जो देवत्व है वह मनुष्य के अपना वायु को आकृष्ट करता हैं, और अन्तरिक्ष है वह मध्यवर्ती वायु(समान) है; वायु व्यान हैं।
“तेज” आदि उर्जा ही है,उदान ; अतः जब मनुष्य में तेज तथा उष्मा क्षीण होने लगती है,तब उसकी इन्द्रियां मन में सिमट जाती है,तथा इस अवस्था में यह पुनर्जन्म के लिए प्रयाण कर जाता हैं।
मनुष्य जब देह त्याग करता हैं,उस समय उसका चित्त (मन) जैसा होता हैं,उसी चित्त से वह प्राण में आश्रय लेता है, तथा उदान (तेज) संयुक्त होकर आत्मा के साथ उसे उसके संकल्पित लोक में ले जाते हैं।
अगर मनात्मा में जो साधक रामनामाकंन कर चुके होंगें; बताओ वो कहां जायेगें?

जो विद्वान ‘प्राण’ के संबंध में इस प्रकार जानता है, और जानकर मनात्मा में ‘राम’ का अंकन कर लेता हैं, उसका वंश क्षीण (व्यर्थ) नहीं होता , वह अमर हो जाता है।
उसके लिए मैं नही कहता बल्कि श्रुति भी कहती हैं कि,

उत्पतिमायतिं स्थानं विभुत्वं चैव पञ्चधा।
अध्यात्मं चैव प्राण्स्य विज्ञायामृतमश्नुत इति।
अर्थात प्राण की उत्पति,उसका आगमन,उसकी स्थिति,पञ्चविध क्षैत्रों में उसका विभुत्व (प्रभुत्व) इसी प्रकार आत्माराम से उसका संबंध ,यह जानकर मनुष्य अमृत्व का पान करता हैं‌।
यही रामनामामृत पान हैं।
अतः साधक बडे प्रेमसे रामनामाकंन करते रहें।
अमृत पान स्वतः होने के लिए समर्पित रामनामाकंन ,होने लगे।
आप लोगों के लिए श्रीरामनामालय भवन का निर्माण करवाया जा रहा हैं,जहां साधक नो, नो दिन के अनुष्ठान मॊन रह कर करने का सुअवसर प्राप्त होगा।
संस्थापक
बी के पुरोहित
श्री राम नाम धन संग्रह बैंक पुष्कर राज
9414002930-8619299909

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