रामनामाकंन साधना 37
फिरत सनेह मगन सुख अपने
नाम प्रसाद सोच नहीं सपने
साधकों !
आप मे से ही कल किसीने पुछा था,कि जो रामनामाकंन की पुर्णता को उपलब्ध हो जाते हैं,उनकी अवस्था कैसी होती होगी ?
तो गोस्वामीजी ने जो उपरोक्त चौपाई लिखी हैं, यह उन रामनामानुरागियों की ही हैं जो रामनामाकंन की पुर्णता को उपलब्ध हो गये हैं और जगत मेमन विचरण कर रहे हैं।
वो भी हमारे जैसों के कल्याण निमित।
ऎसे महात्मा,जो रामनामानुराग को उपलब्ध हैं,वो भी इसी धरा पर विचरण करते रहते हैं,परंतु उनका विचरण अत्यतं विलक्षण हैं,उनको पहचान पाने की शक्ति किसी भी साधक की नहीं हैं, बस हरि कृपा जिन पर होती हैं वहीं उनको चिन्हित कर सकता हैं।
गोस्वामीजी ने लिखा कि
बिनु हरि कृपा मिलहिं नहीं संता
यह रामकृपा जिस पर भी हो जाती हैं,वहीं इनके दर्शन कर पाता हैं,अन्यथा
भले ही वो हमारे समक्ष ही क्यों ना हों, हम उनको पहचान ही नहीं पाते/।
अकदसर तो हम उनके पार्थीव अस्तित्व को ही निहार पाते हैं, पर जब रामकृपा होती हैं तो हम उनके ब्रह्मत्व को अनुभव कर पाते हैं।
मूल में हमारी दृष्टि उनके उस अस्तित्व के दर्शन करने लायक हो जाएं उसके लिए रामनामाकंन की पराकाष्ठा को उपलब्ध होना होगा ?
हमारे जो देवतागण हमारी इन्द्रियों के अधिष्ठाता हैं, उनकी मूल वृतियों को शांत करने जीतना जप अति आवश्यक हैं।
वर्तमान में हमारी गति बाह्यजगत में हैं।
उनका अभ्यास बाह्यजगत से इतना तादात्म्यता पुर्ण हैं कि, इस गतिको तोडना भी बिना प्रभुकृपा के संभव नहीं हैं।
एक वो महान आत्मा जगत में विचरण करते हुए हमारे समक्ष हैं जो कि,अंतरमुखी होकर ब्रह्मसे एकाकार होकर रामनाममय होकर जगत में विचरण कर रहा हैं, और एक हम जो अपनी स्थुल दृष्टि मनोभाव लिए उनके समक्ष भी हों, तो भी हम उनको कहां पहचान पायेगें?
हमको ऎसे संतो के दर्शन करने लिए प्रभुकृपा पर ही आश्रित होकर स्वार्पण का भाव जाग्रत करना ही होगा ।
मूल में यह समर्पण कोई देह का नहीं हैं कि,गये और दण्डवत होगये और समझ लिया कि होगया समर्पण!
नहीं यह समर्पण होता हैं, हमारे मन बुद्धि चित्त और अहंतत्व का।
हमारा स्वार्पण तो हमारी मूल वृति में पुर्ण परावर्तनोपंरात ही हो सकेगा।
समझो!
रामनामाकंन इगना हों इतना हों, इगना सानुरागपुर्ण हों कि, हमारी प्रत्येक इन्द्री पर बैठे देवगणों का रूपातंरण हो जाये हैं।
साधक को, ब्रह्मज्ञान को अनुभुत करने के लिए प्रकृति में होते हुए उस परावर्तन को अनुभूत करना होगा।
साधक को,
विश्व की रूपाकृतियों के पिछे उस तत्व की और निवर्तन जो कि विश्व में सारतत्त्वस्वरूप हैं-और जो सारतत्व स्वरूप हैं वह द्विविध है,प्रकृति में देवगण और साधक में आत्मतत्त्व – और उसके पिछे उस परात्पर तत्त्व को और निवर्तन जिसका ये दोनो प्रतिनिधित्व करते हैं, को अनुभूत करना होगा।
उन वैश्व प्रवृतियों को जिनके द्वारा देवगण करते है,मन प्राण वाक् इन्द्रियाँ ,देह इत्यादि को उस परात्पर के प्रति साधक को सचेत होना होता हैं।
रामनामाकंन के प्रभाव से साधक अपनी साधारण वृतियों से मुड़कर उसकी और उन्मुख होता जाता हैं।
रामनाकंन साधक में, तत्त्व की वह शक्ति ज्योति तथा आनन्द के अधिनस्त होगी जो सबसे परे हैं।
(देखिये कैसे धीमे धीमे यह परावर्तन होता हैं ?)
ऎसी अवस्था में रामनामाकंन कर्ता साधक के अंतःकरण में जो घटित होता हैं,वह यह है कि,यह दिव्य अनभिधेय तत्त्व प्रकट रूप से स्वयं को इन देवगणों में प्रतिभासित करता हैं।
उसकी ज्योति चिंतनशील मन को अधिकृत कर लेती हैं।
उसकी शक्ति तथा आनन्द प्राण को अधिकृत कर लेते हैं, उसकी ज्योति और आत्मरति और आत्मरति भावुक मन तथा इन्द्रियों को अधिकृत कर लेती हैं।
ब्रह्म की विराट प्रतिच्छाया का कोई तत्त्व जागतिक प्रकृति पर पडता हैं, और उस दिव्य प्रकृति में परिवर्तित कर डालता हैं।
यह सब कोई आकस्मिक चमत्कार से घटित नहीं हो जाता हैं । सहसा स्फुरणाओं से ,अन्तरुमिलनों से , आकस्मिक संस्पर्शों तथा दर्शन से प्राप्त होता हैं।
अतः साधकों को सतत. सानुराग रामनामाकंन करते रहना चाहिये।
निर्विघ्न निर्विवाद एवं निर्बाधात्मकता के लिए, रामनाम महामंत्रों की प्रदक्षिणा करते रहना चाहिये।
अथवा रामनाम महातिर्थ धाम श्रीरामनामालय भवन के सानिध्य में जाकर रामनामाकंन करना चाहिये।
जो साधक रामनाम महामंत्र प्रदक्षिणा महायज्ञ से रामनामाकंन पुर्श्चरण आरंभ करते हैं,उनकी अवस्थाओं मे विलक्षणता अनुभव में आती देखी गयी हैं।
साधकों को 3-12-2024;; से 15-12-2024 तक होने जारही इस विलक्षण प्रदिक्षिणा महायज्ञ का अधिकाधिक लाभार्जन करना चाहिये।
निवेदक
बी के पुरोहित
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Willow79
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