रामनामाकंन साधना 38

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रामनामाकंन साधना 38
गतांक से आगे;-

फिरत सनेह मगन सुख अपने
नाम प्रसाद सोच नहीं सपने

यह अलौकिक संत महात्मा,ऋषि,महर्षि, अथवा कोई भी साधारण मानव भी जब इस पद अथवा अवस्था को उपलब्ध हो जाता हैं, तो उस आत्मा और परमात्मा में कहां कोई अंतर रह जाता हैं।
फिरत सनेह मगन सुख अपने
ये अपने आप में ही सदा सदा के लिए मगन हो गये।
अब वहां कोई अन्य हैं ही नहीं !
इनके बाह्य जीवन का नितांत अभाव होगया हैं।

सतत सानुराग रामनामाकंन का प्रकट प्रभाव जिसको साधक अपने आप में ही अनुभव करता हैं।

मन तथा इन्द्रिंयों को अन्तर में निवृत हो जाना ,
उसकी अनुभूति में गुजर जाना, समयोपंरात अनुभुत होता हैं।
उसकी अनुभूति में, प्राण तत्त्व तथा इन्द्रिय-तत्त्व भी एक ही हैं।
इतना ही नहीं देह का जडत्त्व भी रामाकार हो कर उसको अनुभव से गुजरता हैं कि, सब कुछ राम ही राम हैं।
इन की गति में विशिष्ट अनुभूति में आया “राम” इनका सहज जीवन ही बन जाता हैं।
अब इनकी सत्ता , केवल ब्रह्मराम के लिए तथा ब्रह्म राम के अन्तर्गत ही होगी, तो व न केवल इस परम रहस्य को जानते हैं बल्कि वैश्व एकत्व में ही रहते हैं, जो कि उनका अपना ही हैं।
मगन सुख अपने
ये चाहें किसी भी अवस्था में हों किसी भी वस्तु की और अग्रसर हों, जो कि,इनके इन्द्रिय प्राण मन के बाह्य प्रतीत होती हों, पर इनको वस्तुओं का बाह्यरूप का नहीं ,बल्कि केवल ” राम” का ही बोध और चिंतन होता हैं।
उसी का संवेदन ,आलिगंन तथा रसास्वादन करते हैं।
अब इनके लिए बाह्य की कोई सत्ता है ही नहीं।
सियाराममय सब जग जानी
करत प्रणाम जोरि जुग जानी

क्योंकि,अब इनके लिए तो समग्र विश्व तथा विश्व के अन्तर्गत जो भी कुछ हैं, वह सब का सब आभ्यन्तर हो गया। सब का सब राममय

इसका मूल कारण यह हैं कि, रामनामाकंन का ऎसा प्रभाव और प्रताप हैं कि,रामनामानुराग के उत्पन्न होते ही, अहंम भाव की सीमा और वैयक्तिकता की दीवार भंग हो जाती हैं।
व्यक्तिभावपन्न मनस्तत्त्व अपने आपको व्यक्तिगत समझना बन्द कर देगा तब केवल वैश्व मनस्तत्त्व के प्रति सचेत होजाता है जो सर्वत्र एक ही हैं।

मगन सुख अपने,नाम प्रसाद सोच नही सपने

इनके कान मात्र एकही ध्वनि का श्रवण करते हैं “राम” । बाह्य तथा भीतरी देह केवल एक ही स्पर्श का अनुभव करती हैं, “राम” इस स्पर्श को मानो विराट देह के अन्तर्गत होने को ही अनुभव करते हैं।
“,राम” राम ” राम राम” राम राम”

यह लेख मात्र, रामनामाकंन कर्ता साधकों के निमित्त सेवा में समर्पित।
एक न एक दिन यह अवस्था हर रामनामाकंन कर्ता को रामनामानुराग जाग्रत होते ही अनुभूत हो कर रहगी।
अतः सादर रामनामाकंन करते रहे, सादर रामनामाकंन कर्ताओं की सेवा करते रहें।

एक बात विशेष रूप से निवेदन करता हूं, रामनामाकंन कर्ता साधकों की सेवार्थ लगे शाखा प्रबन्धकों से कि,
कभी भी भूल कर भी किसी भी साधक को ठेस नहीं पहुंचने दें।
भूल चुक में कोई भी साधक को ठेस पहुंची तो रामनाममहाराज कभी भी शरणागति प्रदान नहीं करेगें।
हां लौकिक सुख में फिर बेतहासा बृद्धि कर देगें,पर शरणागति प्रदान कदापि नही होगी।
इसी बात को लेकर तो गोस्वामी जी ने इतनासा कह दिया,कि
जिनके मुखारबिन्द से भूल चूक में भी राम नाम निकलता हों,मेरे तन की चमडी से उसके जूते बनवा दिया जाये।
इतना महत्व रामनाम लेने वाले का ?
अतः इस बात को विशेष रूप से अंगींकार करलें।
आपकी सेवा में।
बी के पुरोहित। 9414002930-8619299909
श्री रामनामालय भवन
पंचपीपली नेडलिया,पुष्कर राज ,_305022

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