रामनामाकंन साधना 40*
गतांक से आगे:-
ध्वनि से शब्द और शब्द से स्पन्दन होता हैं,और स्पन्दन में सर्जनात्मक शक्ति।
हमारा सारा ब्रह्माण्ड शब्द से ही सर्जन हुआ हैं।
वह ध्वनि हैं ॐ और शब्द है राम
शब्द शक्ति महान हैं,जिसमें जहां सृजन छिपा हैं वही बिनाश शक्ति भी समाहित हैं।
शब्द से प्रेम और एक शब्द से नफरत भी उत्पन्न की जा सकती हैं, यह शब्द के उच्चारण और प्रषेणता पर निर्भर हैं ।
अतः यह समझ लेना है कि,सभी रूपों के पिछे एक ध्वनि का सृजनात्मक स्पन्दन हैं।
वाणी सृजनात्मिका होती हैं। वह भावावेश के रूपों का मनोगत प्रतिमाओं का तथा क्रियात्मक अन्तःप्रेरणाओं का सृजन करती हैं।
हमारे ऋषि महर्षियों ने वाणी की इस सृज्नात्मक क्रिया को मंत्र के प्रयोग तक विस्तृत किया।
मंत्र का सिद्धान्त यह है कि, मंत्र एक शक्तिमय शब्द हैं।
जिसका उद्गम उद्भव हमारी अपनी सत्ता की उन गुह्य गहराईयों से होता हैं जहां उस मानसिक चेतना से अधिक गहन चैतन्य के द्वारा ध्यान केन्द्रित किया गया हैं,जिसकी रचना ह्रदय प्रदेश में हुई और मूलतः विचार शक्ति के द्वारा जिसका निर्माण हुआ,जिसको मन के द्वारा धारण किया गया।
मनोमयी जाग्रत चेतना के द्वारा ध्यान एकाग्र किया जाता हैं।
तब मूक अथवा मुखर रूप से उसका सुनिश्चित सृजनकार्य के लिए उच्चारण किया जाता हैं।
हां एक बात को गहराई से समझ लें कि, मूक शब्द , मुखर शब्द की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होता हैं।
हम रामनामाकंन करते हुए मंत्रजाप में इसी प्रक्रिया का प्रयोग करते हैं।
रामनामाकंन करते हुए हमारे अंतश में मूक जाप होता हैं।
इस प्रक्रिया में “राम”. मंत्र का अंकन सहित आंतरिक मूक जाप से, हमारे अपने अन्तर में नई स्वगत दशाएँ उत्पन्न की जाती हैं।
हमारी आतंरिक अंतर आत्मा की सत्ता को परिवर्तित किया जाता हैं।
राम नाम शब्द हैं,मंत्र हैं,महामंत्र हैं।
इस मुखर जाप से जहां बाह्य ब्रह्माण्ड में परावर्तन करने की शक्ति निहित हैं वहीं हमारी अंतर आत्मा को परावर्तित करने की महानशक्ति सत्ता उपलब्ध हैं।
और मूक शब्द शक्ति ,उपलब्ध शक्ति एवं अनुलब्ध ज्ञानशक्तियों का और ज्ञान का उद् घाटन किया जा सकता हैं।
राममंत्र के अंकित जाप के प्रयोग से अतिरिक्त अन्यान्य व्यक्तियों के मन पर भी अपनी सोच अनुसार परिणाम उत्पन्न किये जा सकते हैं।
इस अंकित जाप से मानसिक तथा प्राणमय वातावरण में ऎसे स्पन्दन उत्पन्न किये जा सकते हैं,जिनका परिणामों पर,क्रियाओं पर,भोतिक स्तर पर,भौतिकरूपों की उत्पति को भी प्रभावित किया जा सकता हैं।
रामनामाकंन से क्या हो सकता हैं, अथवा क्या होता है , ऎसे प्रश्न करने वालों कि बोद्धिकता को कोई क्या समझा सकता हैं ?
अगर उनकी समझ में उपरोक्त पद्धति आ जाए तो उनकी प्रश्नात्मकता सदा सदा के लिए परिवर्तीत होकर अंकन में सलंग्न हो जायेगी,प्रेमानन्द को उपलब्ध होगें, रामनामानुराग को उपलब्ध हो कर अमृतपान का सुअवसर प्राप्त करेगें।
आगे कल
प्रस्तुति कर्ता
बी के पुरोहित
वास्ते श्री राम नाम धन संग्रह बैंक पुष्कर
Lindsay4949
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