रामनामाकंन साधना 43

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रामनामाकंन साधना 43
हमने यह जाना हैं कि, शब्द ध्वनि के पिच्छे
उसके प्रभाव से उत्पन स्पन्दन से होने वाली सृष्टि से साधक का संबध कैसा हैं ?

 हमने जाना हैं,कि लौकिक शब्द,ब्रह्मशब्द और शब्द व धव्नि का प्रभाव और उससे उत्पन्न होने वाली नूतन सृष्टि का हमारे पर प्रभाव कैसा और कैसे होता हैं।

राम नाम महाराज को वेदों में क्या कह कर संबोधित किया गया हैं।

जब हम वेदों का अथवा उपनिषद का अध्यन करते हैं, तो हमको कहीं ॐ कहीं राम कहीं ब्रह्मशब्द का वर्णन मिलता हैं।
इन शब्दों का अर्थ एक ही हैं।
इनमें कोई रतिभर भी अंतर नहीं हैं।
हां इनके उच्चारण इनके अंकन और इनके मूक वाक् के प्रभाव में बहुत ही अतंर हैं।

मूल में वेदो और उपनिषदों सहित गीता भागवत एवं रामायण में इन शब्दों का वर्णन किया गया हैं, इन शब्दों के प्रभाव को बताया गया हैं।

पर सबका सारांश बताते हुए यह भी बताया गया हैं कि, इनकी थ्योरी को पढने से अथवा जान लेने से व्यक्ति के मानस में ,अंतश में अथवा पराज्ञान में कोई प्रभाव नहीं होता।

हमको जन्मों जन्मों से अंतश की जो अवस्था हैं, अंतशः पर जो प्रभाव छा रखा हैं, जो हमारे डीएन ए पर जो प्रभाव हुआ हैं,या जो डीएन ए का  निज स्वभाव सा बन गया हैं, जो कुटस्थ प्रकृति का स्वभाव बन गया हैं, उसको मात्र थ्योरी जान लेने से  उससे मुक्ति नहीं हो सकती हैं।

 अतः उस स्वभाव में परावर्तन हेतु,उससे मुक्त होने हेतु हमको ब्रह्मशब्द का ही सहारा लेना होगा।

ब्रह्मशब्द अर्थात “राम” शब्द का सहारा लेना ही होगा।
राम शब्द का अंकन ,अथवा मूक जाप अथवा मुखर जाप से होने वाला निज स्वरूप पर इतना भारी होता हैं कि, निजस्वरूप पर छागये मेल अर्थात मायावी प्रभाव को हटाने, हटा कर निज स्वरूप को चिन्हने में एक मात्र सहज साधन हैं।

 हमारे प्रतिपल के कर्म से उत्पन्न प्रभाव ही हैं जो कर्माधीन मल को मिटाने या बढाने का कार्य प्रतिपल करता हैं।

इन सबसे हटकर एक प्रभाव बिलकुल भिन्न रूप से हमारी आत्मा पर छाये मल को हटाने अथवा आत्मा पर एक प्रकार का अदृष्ट आवरण डालने का कार्य करता हैं, वो हैं, ॐ अथवा राम शब्द का जाप ,ध्यान अथवा सतत उसीमें रमण करने से स्थायीत्वता लेता हैं।
जिससे आत्मा के निज स्वरूप पर किसी भी कर्म का कोई प्रभाव नही होता।
जैसा की भगवान शिव जो कि आदियोगी हैं,ने अपने सात शिष्यों को कठोरतर साधनाएँ सिखाई ,बतायी,जनाई,को कि हर कोई नहीं साध सकता, पर वहीं उन्होंने अपनी अर्द्धाग्निं को मात्र शब्द साधना बतलाते हुए कहा कि,


राम रामेति रमेति रमें रामे मनोरमे।
सहस्त्र ततुल्यं राम नाम वराणने।।

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