रामनामाकंन साधना 29
साधकों को यह अनुभव में स्वतः आ ही जायेगा,जब वो धीरे धीरे अपने पुनश्चरणकी पुर्णता की और बढ़ेगा।
जैसा कि हमने कल पढा़ सुना, महर्षिजी ने गहन रहस्य को नामाकंन साधकों के निमित्त उजागर कर दिया।
महर्षिजी ने कल बताया कि, कैसे साधक रामनामाकंन करते हुए बिना किसी योग अथवा योगिक क्रियाओं के स्व-साधनान्तर्गत एकोsबहुश्याम के रहस्य से साक्षात्कार करते हुए अभिन्नता में अवस्तीथ होता है और सर्वत्र अपनत्वता की अनुभूती को उपलब्ध होता हैं।
रामनामाकंन करते करते साधक को यह अनुभूति में गुजरता है कि
बोद्धिकता में यह बोध स्वतः होने लगता हैं कि, परमत्त्व जो परम ज्ञानमय हैं, वह अमन हैं।
वह मन द्वारा मनन नहीं करता हैं, उसको यह स्पष्ट भास होता जाता हैं कि, मनस्तत्व तो उसकी एक न्यून तथा गौण प्रकिया हैं,उसकी स्वभाविक अवस्था नही हैं, स्वाभविक वृति नहीं हैं।
अब साधक उस अवस्था से उपर उठ गया हैं जो कि, जन्मों से नानारूपों में जगतविचरण करते हुए ना जाने कब उसकी मनस्तत्वता को अस्वभाविक रुप से स्वभाविक अनूभूत कराता आरहा था।
वो अब उस मानसिकताको त्याग कर सहज स्वभावको उपलब्ध होरहा हैं।
यह उसकी अंतिम अनुभूति होती हैं,क्योकिं उसके बाद की जो अवस्था है,जिसको वह उपलब्ध हो ब्रह्माकार होने जारहा हैं ।
ब्रह्माकार होते ही अमना हो सर्वमना होजाता हैं।
ब्रह्माकार हो जाने के उपरांत साधक शरीरी हों या अशरीरी हों?
वह निर्भय निश्विंत अमना, अमायिक अवस्था को उपलब्ध हैं।
अब उसकी अवस्था परात्पर राम से एकाकार होकर रामावस्था को उपलब्ध हैं अतः उनके लिए भी यही कहा जायेगा,जो रामके लिए कहा गया हैं
बिनु पग चलहिं सुनहिं बिनु काना
कर बिनु कर्म करहिं विधि नाना
यह कैसी अवस्था हैं ?
यही रामनामाकंन कर्ता साधकों की अतिंम अवस्था हैं, जो सशरीर होते हुए भी अशरीरी हैं। और जो स”मना” होकर भी निर्मना हैं।
गोस्वामीजी ऎसे संतों को देखते हुए कहते हैं कि, रामनामलोकमें विचरण करते हुए यह ससरीरी परमात्मस्वरूप अवस्थाको उपलब्ध होते हुए भी जगत में बिचरणरत रहते हैं, वो मात्र अपने भगतों के हित के लिए।
सॊ केवल भगतन हित लागी
यह ब्रह्माकार शरीरी होकर निश्चिंत विचरण करते हैं,पर हैं बडे़ अशरीरी।
फिरत सनेह मगन सुख अपने
*नाम प्रशाद सोच नहीं सपने”
ये लोग रामनामाकंन करते हुए ही ब्रह्माकार हुए और ब्रह्माकार होकर जगत में विचरण करते हैं,क्यों ?
क्यों उनको क्या आवश्कता हैं विचरण करने की?
तो महर्षिजी ने गोस्वामीजी की उक्त अर्द्धालि को उदघाटित कर दिया कि,
सो केवल भगतन हितकारी
निश्चित ही इनको निश्चिंत विचरण करते हुए देख पाना भी उन्हीं के लिए संभव हैं, जिन पर परात्पर पारब्रह्म परमात्मा राम की विशेष कृपा होती हैं।
सप्षट निर्देश भी है कि,
संत विशुद्ध मिलहिं पुनि तेहीं
राम सुकृपा बिलोकहिं जेहीं
हे रामनाकंन साधकों!
आप के लिए श्री राम नाम धन संग्रह बैंक यही प्रार्थना करता हैं,कि, आप पर रामनाम महाराज की कृपा अतिशिघ्र हों, और आप इसी लोक में इन अवस्थाओं को उपलब्ध हो जाएं।
जय जय राम राम रामनाम अंकनम्
आपका सेवक
बीकेपुरोहित 9414002930-8619299909
शाखा प्रबंधक इस लेख के निचे अपना नाम नबंर डाल कर आगे प्रेषित कर सकतें हैं।
आप पर भी महर्षिजी की कृपा हैं, और आपमें और बीके में कोई अंतर नहीं हैं। जय जय रामराम ।
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