रामनामाकंन साधना 25

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रामनामाकंन साधना 25
लोक लाहु पर लोक निबाहु
रामनाम के अंकन का प्रभाव लोक और परलोक दोनो स्थानों पर एक साथ ही होता हैं।

दरस परस मज्जन अरू पाना
दर्शर्न करनेसे, स्पर्स करने से अंकनस्नान करने से प्रक्षिणा करने से भिन्न भिन् अनुभूति होती हैं।

अकिंत रामनाम विग्रह के दर्शन एवं प्रदक्षिणा से जो अनुभव होता है उसके संन्दर्भ में चर्चा करते हैं।

रामनामसंग्रह के दूर से दर्शन करने का फल इतना हैं कि, समस्त देवताओं के दर्शन करनेसे जो पुण्य लाभ होता हैं,वह लाभ दूर से ही रामनामसंग्रह के दर्शन का लाभ होता‌हैं।

रामनाम महाराज को एक बार दण्डवत प्रणाम करने का पुण्य लाभ उतना‌ हैं, जितना कोई दशाश्वमेध यज्ञ कराकर प्राप्त कर सकता हैं।

रामनामसंग्रह की प्रदक्षिणा का पुण्यलाभ , उतना हैं जितना कि, कोई व्यक्ति समस्त ब्रह्माण्ड की प्रदक्षिणा करने के उपरांत प्राप्त कर सकता हैं।

       प्रभु के किसी भी विग्रह के दर्शन मात्र से हमारी मानसिकता को जो उच्चतर अवस्थाओं की भिन्न भिन्न अनुभूति होती हैं,वह है अति विलक्षण,और उसका वर्णन करना तो असंभव ही हैं।

हां प्राथमिक दृष्टि से तो अनुभव सबका कभी भी एक सा नहीं हो सकता।

क्योंकि सबके लौकिक जीवन में विगत अनुभव की भिन्नता होना।

,रामनाम के पति साधक का प्रेम,
प्राथमिक धरातल पर मानव का अनुभव उसी पर आधारित रहता है,जो उसके व्यक्तिगत जीवन में व्यतीत हुआ होता हैं।

   किसीका जीवन सात्विक तो किसीका राजसिक अथवा किसीका तामसिक विचारधारा वाले परिवार में  जीवन व्यतीत हुआ होता हैं। 

 जिसका तामसिक जीवन व्यतीत हुआ होता हैं उसको सात्विकता के दर्शन की अनुभूति कभी भी नही होसकती।   (बिना रामनामाकंन के)

      कारण सप्ष्ट है नि,, तामसिक जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्तिमें ,  देवदर्शन में भी तामसिक विचारों की प्रधानता रहती हैं। 

        रामनामाकंन साधन की साधना में और अन्य साधनाओं में एक बडासा अतंर यह हैं कि,

रामनाम महाराज का स्पर्स कुछ ऎसा हैं जैसा कि अग्नि का।
रामनाम दाहक जिमि आगि

     अग्नि की दाहकता का अनुभव जैसे सभी का एकसा ही  होता हैं,वैसे ही, साधक ब्रह्माण्ड के किसी भी भाग में रामनामाकंन करें,आतंरिक अनुभव सबका एकसा होता हैं।


     दर्शन ,स्पर्स, तीर्थाटन की अनुभूति कितनी ही भिन्न भिन्न होती हों? पर रामनामाकंन की अनुभुति में अभिन्नता रहेगी। 

कारण स्पष्ट हैं कि, हमारा प्रत्येक नामाकंन उस परब्रह्म परमात्मा राम से सहज ही अभिन्नतानुभूति कराता हैं।
, जिसका अनुभव
राम बोलने व सुनने का,जो प्रभाव लौकिक रूप से होता हैं,वह अनुभव में आने‌लायक नहीं भी हों , पर रामनामाकंन में न कुछ कहना हैं,न सुनना हैं,न सुनाना हैं,बस मात्र अकंन होता हैं, यह अकंन होता तो कागज पर कलम से,जो साधक को दिखता हैं,जिस पर सहसा कोई विश्वास ना भी करें, पर इसकी छाप ब्रह्माण्ड पर होती हैं, और. ऎसी होती हैं कि, जनम जनम मुनि जतन करा कर भी वह लाभ नहीं ले पाते,जो एक बार अकंन से प्राप्त हो जाता हैं।

      पर आप सोचो कि, यह रामनामाकंन होने से पूर्व क्या क्या गतिविधि शरीर के भीतर होती हैं,और क्या क्या गतिविधि आपके आसपास के बातावरण पर और क्या क्या गतिविधि ब्रह्माण्ड सहित सम्पूर्ण अतंरिक्ष में होती  ,इसका वर्णन कौन करेगा ?

महीन बुद्धि से अनुभव करने का प्रयास अवश्य करें तो आप को अनुभव में आयेगा।

   हां भले कोई साधक कोई अनुभव नहीं करना चाहें तो कोई बात नहीं, उसके रामनामाकंन का प्रभाव अतंर जगत सहित ब्रह्माण्ड और पिण्ड पर होता हैं वो तो होकर ही रहेगा।

एक बार रामनामाकंन होते ही ब्रह्माण्ड में जो हलचल होती हैं उसको कौन कौन अनुभव करेगा?

रामजी ने जब धनुष भंग किया‌ था, तब ब्रह्माण्ड में जो हलचल हुई उसको किसने किसने‌अनुभव किया, मात्र और मात्र देवगणों को अनुभव हुआ, और जनक की सभा में जो उचस्तरिय अवस्था को उपलब्ध थे उन सज्जनों को ,बस ।

    रामजी ने लक्ष्मणजी को कहा कि,प्रथ्वी को थामे रखना जब धनुष टूटे,क्योकि यह शिव धनुष हैं और टूटते ही सारा ब्रह्माण्ड ही डगमगा जायेगा।

ऎसे ही राम नाम का अंकन होता हैं तब वैसी ही हलचल सम्पुर्ण ब्रह्माण्ड में होती हैं।
और यह जो बार बार तारों का टूटना, उल्कापिण्ड का गिरना, गेलेक्सियों के अथवा आकाश गंगा में सतत प्रलय सा उठना, साधक इसके बारे में कभी ध्यान करें।
इनके पिछे साधकों का रामनामाकंन ही हैं।

साधक के पुर्वज जो कोई तारों के रूपमें कोई अन्य किसी लोक में भ्रमण कर रहे हैं,उनको गति प्रदान करने के लिए किया‌गया रामनामाकंन उसका प्रधान कारण हैं।

बी के पुरोहित
वास्ते श्री राम नाम धन संग्रह बैंक पुष्कर राज

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