रामनामाकंन साधना 24
एक साधक ने कल फोन पर पुछा कि क्या रामनामाकंन साधना करने से कुण्डलिनी जाग्रत हो सकती हैं क्या?
तो उत्तर तो था कि, हां बिलकुल सहज संभव हैं।
अगर साधक का लक्ष्यकुण्डलिनी जागरण की ही हैं तो ?
तो पहले तो मैने उनको एक सत्य घटना सुनाई जो कि अपने
रामनामधनसंग्रह बैंक*
से ही संबधित थी।
बात १९८८ की थी,एक सदस्य थे श्रीमान आर एन बैनर्जी, जो कि सीताराम पूरी अजमेर में रहते थे!
एक दिन उन्होने बडे आग्रह करते हुए मुझे घर आने का आदेश किया,और जब मैं गया तो उन्होने एक बात मजझसे पुछी,कि बालकृष्ष एक बात बताओ,क्योंकि मुझे कोई भी कुछ भी कहदें पर मुझे उनकी बात पर विस्वास नहीं,बस तुम बताओ कि क्या सत्य हैं?
मैने कहा प्रभु सत्य तो मेरी नज़र केवल राम नाम ही हैं,जिसको आदि अनादि से लोग गाते आरहे हैं,बल्कि अंत समय में भी यही उच्चारित करते हुए जाते हैं कि राम नाम सत्य हैं
पर मैने पुछा कि, प्रभु आपने सवा करोड रामनाम लिखित जप कर लिये हैं, और अब आप यह प्रश्न पुछ रहे हैं, तो आपको अब क्या शंका होगयी हैं,जो आज यह पुछ रहे हैं?
वो भी इस उम्र में आकर?
उन्होने कहाकि, यहां श्रीरामधर्म शाला में एक संत आये हुए थे,चितीजागरण वाले ।
,मेरे सामने रहने वाला श्रीकिशनबंसल मुझे वहां लेकर गया था, कि,चलो बहुत दिन होगये आपको रामराम लिखते हुए ,और आज तक आपकी कुण्डली जाग्रत हुई नहीं, आपको संत के पास ले चलता हूं,आपकी कुण्डली जाग्रत कर देगें।
तो मुझे भी लगा कि, सारी जिंदगीं होग ई राम राम अंकित करते हुए,अभी तक तो कुण्डली जाग्रत हुई नहीं, चलो भाई चलेगें,कल जब तुम जाओ तो मुझे भी लेकर चलना!
क्योंकि वो बहुत बुजुर्ग थे, और अकेले जाना आना शारिरीक दृष्टि से समनभव नहीं था।
दुसरे दिन जब हम गये,तो वहां पर पन्द्रह बीस साधक उनके सानिध्य में बैठे थे।
और जैसे ही हम वहां गये,तो उनके साथी श्रीकिशनजी ने कहा महाराज मैं एक साधक को लेकर आया हूं,इनकी भी कुण्डली जाग्रत करनी हैं !
महाराज ने जैसे ही बैनर्जी को देखा और अपने आसन से उठ कर नीचे आगये और आकर बैनर्जी के पैर छुए,और बोले कि,भैया तुम इनको यहां क्यों लेकर आगये?
इनके तो सारे चक्र पहले से ही जाग्रत हैं।
षटचक्रों को जाग्रत कर अब यह सातवें सहस्त्रसार में ही अवस्तिथ रहते हैं जो भी इनको लेकर आया हैं वो लेकर जाएं और इनको घर छोड आएं, इनको अब और किसभी साधना की आवश्यकता नहीं हैं बस अब तो यह आशिर्वाद प्रदाता हैं,और उन्होने यह कह कर बैनर्जी के पैर छुए और कष्ट के लिए क्षमायाचना करने लगे ।
अब बैनर्जी ने मुझसे पुछा कि,तू बता बालकृष्ण कि क्या मेरे सारे चक्र जाग्रत हैं क्या ?
मैने कहा,प्रभु यह सब बातें तो ठीक हैं,पर अब दो बात की परेशानी आयेगी !
एक तो लोग बाग जो जान गये वो रोज आपको परेशान करेगें कि,मॆरा कोर्ट में केस हैं आज तारिख हैं आप आशिर्वाद दें,कि मैं जीत जाऊं।
दुसरा आपको जिस अवस्था का बिलकुल ध्यान नहीं था कि,मैरे षटचक्रों का भेदन हो रखा हैं, तो कहीं आपका रामनामाकंन अब प्रभावित नहीं हो जाये ?
वे बोले कि अब तो ये लोग रोज सुबह आने लगे हैं कि,आशीष दे दीजिये।
मैरा निवेदन था कि,आप से जो कुछ साधना आपने की हैं उसका सीधा फल हर कोई चाहेगा।
अतः मैरा निवेदन तो यही हैं कि,आप रामनामाकंन करते रहिए और इन सब चक्रों वक्रों के चक्कर में मत पडिये। ,
जब जीवन भर रामनामाकंन के अतिरिक्त किसी को महत्व दिया नहीं तो अब आप…?
तो यह घटना मेरे स्वयं के साथ हुई मेनें स्वयं देखा जाना माना ,और एक दिन वो ही संत जिनके पास किशनजीबंसल लेकर गये थे वो स्वयं चल के उनसे आशीषें लेने उनके घर आये थे!
तो अब आप स्वयं देखिये सोचिये कि,षटचक्रों के भेदन को लेकर कितने तप कराए जा रहे हैं।
कुण्डली जाग्रत कराने के लिए कितने कितने रुपये खर्च करके आयोजन कराए जा रहे हैं।
सहज रूपसे रामनामाकंन करने में क्या समस्या हैं ?
अच्छा जिनके सारे चक्र खुल गये उनके लिए अब क्या आध्यात्मिक जगत में लाभ हो रहा हैं?
जो रामनामाकंन से नही मिल रहा हैं?
उनसे जगत को भी क्या लाभ हो रहा हैं।
क्षमा करियेगा कि, जो काम बिना अहं के रामनामाकंन से हो रहा हैं वो तो अतुलनीय हैं
इसमें अहं जाग्रत होने के स्थान पर साधक अहं रहित होता हैं।
इसमें परदोष देखने का भाव स्वतः समाप्त होता हैं।
इसमें साधक को इतनी शांति का अनुभव होता हैं कि, चित्त की समस्त वृतियां पुर्ण शांत होकर अपने आप में स्थित हो जाती हैं और साधक ब्रह्माण्ड में निश्चिन्त होकर विचरण करता हैं।
ऎसे साधक वायु मार्ग से भी गमन करने में भी सहज होते हैं और जहां चाहें वहां जा सकते हैं,जो चाहे पा सकते हैं, परंतु बात यह होती हैं इस अवस्था को उपलब्ध साधक में किसी भी प्रकार की उसको कोई चाह है ही नहीं हैं।
अतः रामनामाकंनकर्ता साधकों से निवेदन हैं कि, बस सहज भाव से मात्र रामनामाकंन किजीये!
इस जगत में रामनामानुराग से अधिक प्राप्त करने की कोई भी सामग्री है ही नहीं जो रामनामाकंन करने वाले को प्राप्त करने की आवश्यकता हों ?
जगत से प्राप्त प्रत्येक वस्तु जगत को ही लोटानी होगी,न वो हमारी थी न हमारी हैं,न हमारी हो सकती हैं, अतः यहां कुछ भी पाने जैसा हैं ही नहीं। और कुछ भी हैं तो वह हैं एक मात्र राम का नाम, बस रामनामानुराग को उपलब्ध हो जाएं,बस यही भाव यही प्रार्थना,रहती हैं, और साधकों की भी यही प्रार्थना रहनी चाहिये।
जय जयजय रामनामाकंनम्
प्रस्तुत
वास्ते श्रीरामनामधनसंग्रह बैंक पुष्कर राज
बालकृष्णपुरोहित 9414002930-8619299909
जिसको भी समझ बैठ जाएं,वो अपने से जुडे रामनामाकंन को संकल्पित सदस्य के पास भेज दें,। रामनामाकंन को जो संकल्पित नहीं उनको यह लेख भेजने के लिए महर्षिजी ने मना किया हैं। धन्यवाद जी।
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